कहां गई वो चिड़िया?



मेरे बचपन में निसर्ग के प्रति मेरा झुकाव बहुत ही ज्यादा था, वैसे वह आज भी है लेकिन आज की परिस्थिति के कारण मैं पर्यावरण को इतना समय नहीं दे पाता। इस सृष्टि में पाई जाने वाले पेड़-पौधे तथा विभिन्न तरह के पशु पक्षी मेरे मित्र हे । बचपन से ही मैं इन पेड़ पौधों में दिलचस्पी रखता हूं, मेरे बचपन में हमारे घर के आस-पास बहुत सारे पंछी आया करते थे । कुछ ने तो हमारे घर के पीछे पेड़ों पर बहुत सारे घोसले बना रखे थे। इन सभी में एक पंछी बहुत ही ज्यादा मात्रा में पाया जाता था और वह था चिड़िया। आजकल के जमाने में तो चिड़िया देखने को भी नहीं मिलती लेकिन जब मैं छोटा था तब 1991-92 के आसपास बहुत सारी चिड़ियाघर में , घर के आस-पास, इधर-उधर मकानों में दिखाई देती थी। उनकी इतनी भरमार थी कि उनके आवाज से पूरा मोहल्ला जी उठता था। दोपहर को तो मेरी दादी चिड़ियों के लिए खाना तथा पानी का इंतजाम हर रोज करती थी । दोपहर का खाना खाने के बाद मैं और मेरी दादी चिड़ियों को खाना देने में लग जाते थे । सारी चिड़िया उस खाने पर टूट पड़ती थी। कई चिड़िया तो मेरी दादी के बहुत पास आती थी जैसे ही मैं उनको पकड़ने के लिए जाता था वह सब चिडिया एक साथ उड़ जाती थी। वह एक वक्त था और एक आज का वक्त जहां पर चिड़ियों का नामोनिशान ही मिट गया है। पता नहीं क्या हो गया लेकिन लगता है कि आधुनिक समाज में चिड़ियों के लिए कोई जगह नहीं है । पता नहीं सब चिड़िया कहां चली गई ? मुझे मालूम है कि यह मेरे बचपन की दोस्त इतनी भी कमजोर नहीं कि किसी आधुनिक मानव के सामने हाथ टेक दे। मुझे लगता है यह मेरी दोस्त कहीं पे दूर चली गई है जहां आज भी किसी की दादी उन्हे प्यार देती होगी और मेरे जैसा ही कोई छोटा सा लड़का उन्हें देखकर बढ़ा हो रहा होगा।

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