सामाजिक पक्षी कौवा

मेरे पसंदीदा पक्षियों में एक और नाम मेरे दिमाग में दौड़ता रहता है और वो है कौवा. बचपन से ही मेरा संपर्क ज्यादातर कौवो और चिडियोसे चला आ रहा है. दोपहर का वक़्त हो मई महीनेका दिन, मुझे गर्मियों की छुट्टी, में अकेला दोपहर को बैठा रहा बगीचे में और वहा कौवे महाशय न आये ऐसा तो कभी होता ही ना था. काव काव करता कौवा हमेशा हमारे घर के आसपास, झाड़ियो में यहाँ वहा दिखाई देता था. बचपन में मुझे कौवो से डर भी लगता था, उसका कारन भी था, मेरे दादाजीने मुझे बताया था की कभी कभी कौवे हमारी आँख अपनी चोंच से फोड़ डालते है. हरे राम और में डरता भी क्यों ना क्यूंकि बचपन में दो बार दोपहर के वक़्त कौवो ने आसमान से सीधे मेरे सर पर चोंच मारने की कोशिश भी की थी. लेकिन जैसे जैसे में बड़ा होता गया मेरा वो डर कम होता गया, लेकिन आज भी में कौवो से सावधान रहता हु.




बचपन में मेरे स्कूल के बच्चे रोटियों के तुकडे हवा में फेकते थे तो कौवे आसमान में ही उन्हें पकड़कर उड़ जाते थे. कौवा एक बड़ा ही होशियार और चतुर पक्षी है. कौवा एक बहुत ही सामाजिक पक्षी भी है. यदि बहुत सारे कौवे एक साथ आजाये तो समज लेना की उनकी शोक सभा चालू है. मैंने बहुत बार कौवो की भीड़ मरे हुए कौवे के आजूबाजू देखि है. कभी कभी कौवे खुद की स्कूल भी भरवाते है. शाम के वक़्त ज्यादातर कौवे एक साथ देखे जा सकते है. शायद वे एक दुसरे से दिनभर हुई घटनाएँ शेयर करते होगे. लोग कौवे के बारे में जो भी कहे लेकिन मृत्यु पश्यात कौवा पिंड को छूना ही चाहिए नही तो आत्मा को शांति नहीं मिली ऐसी एक आम धारणा हिन्दुओ में है. खैर जो भी हो, आज जब भी मै कौवे के बारे में सोचता हूँ मेरा मन बचपन में चला जाता है, क्योंकि मेरे बचपन के साथ ही कौवे भी भूतकाल में छुट गए है. अब पेड़ ही नहीं बचे तो कौवे कहासे आयेंगे, काव काव कैसे करेंगे और मुझ पर हमला कैसे करेंगे???

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